यात्रा से पहले यज्ञ क्यों ?

पावन कैलाश-मानसरोवर यात्रा से पूर्व एक साधक का प्रश्न था- यात्रा से पहले यज्ञ क्यों?

प्रश्न संजीदा था और प्रशंसनीय भी, क्योंकि यह एक तरह से यह अधिकतर साधकों का प्रश्न था, भले ही वे संकोचवश नहीं पूछ रहे थे।

यज्ञ के पर्यावरणीय महत्व के बारे में तो हम सब जानते हैं कि यह वातावरण को शुद्ध करता है। गूगल करते ही इतनी जानकारी तो साफ हो जाती है। पर आध्यात्मिक महत्व के बारे में?

जैसा कि मैं साधकों से कहती आई हूं कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा महज भौगोलिक नहीं, बल्कि अपने अंतर्मन की यात्रा भी है और ऐसे में, यज्ञवेदी पर गूंजने वाली वैदिक ऋचाएं आपकी इस यात्रा की मनोकामना पूरी करती हैं। इसलिए किसी शुभ कार्य से पहले, आप हजार काम छोड़कर यज्ञ करें।

वेदों में यज्ञ को एक श्रेष्ठ कर्म माना गया है। यजुर्वेद में उल्लेख है-

कस्त्वा विमुच्ञ्त स त्वा विमुच्ञ्ति कस्मै त्वाविमुञ्चति तस्मै त्वाविमुञ्चति। पोषाय रक्षसां भागोसि।

अर्थात्, सुख-शांति-समृद्धि की चाह रखने वाला व्यक्ति यज्ञ का त्याग नहीं करता। जो यज्ञ का त्याग करता है, वह वास्तव में भगवान का त्याग करता है। यज्ञ में सबकी समृद्धि, सबके विकास के लिए आहूति दी जाती है। जो यह आहूति देने से बचता है, वह मनुष्य नहीं, दानव समान है।

साफ है, यज्ञ का, जो कि एक श्रेष्ठ कर्म है, त्याग नहीं करना चाहिए और जो यह करता है, वह भगवान का त्याग करता है, भगवान को ठुकराता है।

अब आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि यज्ञ कहते हैं त्याग को।

‘यज्ञ’ का त्याग नहीं करना चाहिए- इसका साफ-सा मतलब है कि ‘त्याग’ का त्याग नहीं करना चाहिए और जो यह करता है, वह ईश्वर को त्यागता है।

आध्यात्म-दर्शन में ‘अंतर्मन की यात्रा’ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। आप बहते हैं अंदर ही अंदर, सुख-शांति और समृद्धि की तलाश में। यहां समृद्धि को भौतिकता से न तौलें। अपने अंतःस्थल तक आप पहुंचते हैं। अपने सत्य को पाते हैं। अपने शिव, यानी कैलाशपति को आप पाते हैं। अपनी सुंदरता को आप पाते हैं। यानी कैलाश-यात्रा एक श्रेष्ठतम कर्म है।

अब देखिए कि इस लोक का नियम है- ऊपर से नीचे की ओर आना। उदाहरण, पानी का प्रवाह देखें। लेकिन हम नीचे से ऊपर जा रहे हैः श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठतम कर्म की ओर, बाह्य मन से अंतर्मन की ओर, भूलोक से शिव-लोक की ओर। दरअसल, हम ईश्वर को एहसास करने की तरफ बढ़ते हैं। हम सशरीर परलोक की अनुभूति करने लगते हैं। जो याज्ञिक (यज्ञ करने वाले) होते हैं, वे बाधाओं से परे होते हैं।

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